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लेखनी कहानी -27-Mar-2022 मां बनकर देखा , अब बनूंगी सास

मां बनकर देखा , अब बनूंगी सास : भाग - 2 


इस कहानी को पढ़कर अधिकांश पाठकों ने मुझे सलाह दी है कि इसका दूसरा भाग भी लिखिए । इसलिए पाठकों के आग्रह पर और मैं भी चाहता हूं कि इस कहानी को पूर्ण किया जाए इसलिए इसका दूसरा और अंतिम भाग लिख रहा हूं । बस इतना निवेदन है कि समीक्षा करना ना भूलिएगा । 
राधिका अपने बेटे और बहू के व्यवहार से बहुत क्षुब्ध हो गई थी । उसने उन दोनों को सबक सिखाने का निर्णय कर लिया था । इसलिए उसने सुबह ही कह दिया कि वह मथुरा वृन्दावन घूमने जायेगी । 

इस घोषणा से आयुष सकते में आ गया । इतने में स्वाति भी जागकर आ गई थी । उसने देखा कि आयुष के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही हैं । डाइनिंग टेबल पर चाय नाश्ता भी नहीं है और मां जी भी वहां पर नहीं हैं । 

स्वाति ने आयुष से पूछा "क्या हुआ ? तुम इतने परेशान से क्यों लग रहे हो ? और अभी तक चाय नाश्ता भी नहीं बना" ? 

अब पहली बार आयुष के स्वर में तल्खी थी "अगर चाय नाश्ता करना था तो जल्दी जगती और बना लेती" ? 

स्वाति ने आश्चर्य से आयुष को देखा जैसे ये कोई दूसरा आदमी हो । बोली "तुम तो जानते हो आयुष कि मैं आठ से पहले नहीं जगती हूं । और मुझे जगते ही चाय चाहिए । जाओ , मेरे लिए चाय बना दो ना प्लीज़" ? 

आयुष ने कहा "अब अपनी आदतें बदल डालो, डार्लिंग । अब तुम्हारी शादी हो गई है । ये मायका नहीं , ससुराल है । तुम यहां की बहू हो, बेटी नहीं । मां ने तुमको कल बेटी का खूब प्यार दिया था लेकिन तुमने उन्हें क्या दिया ? दुःख, संताप, क्लेश, पीड़ा के अलावा" ? 

"मैंने ऐसा क्या कर दिया जो तुम मुझ पर इल्ज़ाम पे इल्ज़ाम लगाए जा रहे हो ? मुझे वह खाना पसंद नहीं आया तो मैं उसे कैसे खाती ? उन्हें वह खाना बनाना ही नहीं चाहिए था । एक बार मुझसे पूछ लेतीं कि क्या बनाऊं खाने में , तो कौन सी वे छोटी हो जातीं ? लेकिन वो तो सासू मां हैं न , वो क्यों पूछेंगी ? खाना है तो खाओ नहीं तो भूखे मरो । अब इस बात पर मां जी नाराज़ हों तो मैं क्या करूं " ? स्वाति गुस्से से बिफर पड़ी ।

इससे आयुष का पारा भी चढ़ गया । गुस्से से बोला "सही कह रही हो । मम्मी तो नौकरानी है ना और तुम महारानी ? चलो जाओ और दोनों के लिए चाय बनाकर लेकर आओ" ।

पहली बार आयुष ने आदेशात्मक भाषा का इस्तेमाल किया था । स्वाति को घोर आश्चर्य हो रहा था कि यह आयुष को क्या हो गया है ? उसने कहा " मेरी तबीयत ठीक नहीं है । आप खुद बना लो" । और यह कहकर वह अपने कमरे में चली गई। 

इस घटना से आयुष हतप्रभ रह गया । कल से इसने किया ही क्या है जो इसकी तबीयत खराब हो गई ? बहुत ज्यादा सिर पर चढ़ाने का यही अंजाम होता है । लेकिन सिर पर तो उसने ही बैठाया था न । कल वह मम्मी का इतना अपमान करती रही और वह खामोश बैठा रहा । क्या इसी दिन के लिए मुझे मां बाप ने पाल पोस कर बड़ा किया था ? पापा की मृत्यु के बाद सारी जमा-पूंजी मां ने मेरी पढ़ाई और शादी में खर्च कर दी । क्या इस दिन के लिए ? कोई न कोई इलाज तो करना ही पड़ेगा इसका "!

यह कहकर वह राधिका के कमरे में चला गया । राधिका अपनी यात्रा की तैयारी करने लगी । लगभग एक घंटे तक दोनों में क्या बातें हुई , पता नहीं । आयुष अपने कमरे में आकर सो गया। 

करीब ग्यारह बजे स्वाति बिस्तर से खड़ी हुई। नहा धोकर तैयार होकर वह करीब एक बजे नीचे आई तो देखा कि एक सत्संग की मंडली आई हुई है और अपना पूरा माइक सिस्टम लगा रही है ‌। तो क्या आज फिर सत्संग होगा ? और वह भी माइक से ? उसका तो सिर फट जाएगा ? वह पैर पटकती हुई अपने कमरे में गई और आयुष को जगाया 

"आयुष , देखो जरा नीचे जाकर । मां जी ने सत्संग वालों को फिर से बुलवा लिया है और पूरा साउंड सिस्टम भी साथ लाए हैं वे लोग । इतने शोर में मैं कैसे रहूंगी ? मेरा तो सिर दर्द से फट जाएगा" ? 

आयुष बड़ी गंभीरता से बोला "बात तो सही है । इतना शोर कैसे झेलोगी तुम ? ऐसा करो , तुम किसी होटल में चली जाओ । मैं अभी बुक कर देता हूं" । और वह अपना मोबाइल लेकर होटल सर्च करने लगा । 

"तुम पागल तो नहीं हो गए हो ? मैं अकेली होटल जाऊंगी क्या ? जाएंगे तो दोनों ही जाएंगे नहीं तो मैं नहीं जाऊंगी "। 
साफ साफ धमकी थीं । इसी के चलते अब तक आयुष पर हुकूमत कर रही थी वह । लेकिन इसका आयुष पर कोई असर नहीं हुआ । वह बेपरवाह होकर होटल सर्च करने में लगा रहा ।

आयुष के इस व्यवहार से स्वाति झल्ला गई और जोर जोर से बोलने लगी "तुम मां जी को कहते क्यों नहीं कि वे सत्संग नहीं करें । हमारे जाने के बाद जो चाहें करें" । 

"तुम तो ऐसे कह रही हो कि जैसे यह घर तुम्हारा हो और तुम आदेश दे रही हो । घर की मालकिन मम्मी हैं । वे जो चाहें करें , हम कौन होते हैं रोकने वाले उन्हें" ? आयुष ने बड़े शांत स्वर में कहा ।

"प्लीज़ आयुष , कुछ करो ना । ऐसे तो कैसे रह पाएंगे हम संडे तक"  ? 

आयुष मन ही मन मुस्कुराने लगा । तीर सही जगह लगा है । बोला "ऐसा करता हूं कि मैं तुम्हारा टिकिट आज की फ्लाइट से करवा देता हूं । तुम वापस चेन्नई चली जाओ" । 

"ये तुमको हो क्या गया है आयुष ? मैं अकेली जाऊंगी क्या" ? हैरान स्वाति ने कहा

इतने में नीचे से भजनों की तेज तेज आवाज आने लगी । स्वाति एकदम चिढ़कर बोली "सुना तुमने ? कितना कान फाड़ू शोर हो रहा है ? मेरा तो सिर फट जाएगा"  ? 

"ऐसा करो एक सिरदर्द की गोली लो और सो जाओ । मैं तो भजन सुनने नीचे जा रहा हूं" । और वह जाने लगा । स्वाति वहीं धम्म से पलंग पर बैठ गई। 

इधर राधिका ने केवल अपने लिए खिचड़ी बना ली थी और खा ली थी । आयुष और स्वाति दोनों सुबह से भूखे ही थे । आज आयुष ने भी कोई ऑर्डर नहीं किया था । वह भजन मंडली में आकर बैठ गया और भजनों का आनंद लेने लगा । 

उधर स्वाति शोर से वैसे ही परेशान थी । उस पर सुबह से कुछ भी नहीं खाया था उसने । इसलिए और भी परेशान हो गई थी । परंतु सबसे बड़ी परेशानी तो आयुष के बदलते व्यवहार से थी । अब क्या करे वह ? उसने आखिरी हथियार चला । आयुष को फोन करके अपने पास बुलाया और कहा कि उसे बुखार आ रहा है । आयुष ने उसका हाथ छुआ तो लगा हल्की सी हरारत है । वह उसे लेकर अस्पताल चला गया। 

इधर राधिका ने अपने मौहल्ले की सब औरतों को बुला लिया । सब औरतों ने खूब डांस किया । भजनों का आनंद लिया । शाम तक चलता रहा ये कार्यक्रम । 

उधर आयुष स्वाति को लेकर जब अस्पताल पहुंचा और फिजीशियन को दिखाया तो उसने फूड पॉइजनिंग बताया और पूछा कि कल क्या खाया था ? जब उनको यह बताया कि कल दोनों टाइम खाना "जोमैटो" से मंगवाया था तो डॉक्टर ने कहा "ये बाहर का खाना बिल्कुल बंद करना होगा । आज केवल खिचड़ी और दलिया लीजिए । कल एक बार फिर से मुझे दिखाइए । और ये दवाएं ले लेना । उसे पर्चा पकड़ाते हुए डॉक्टर ने कहा । 

दोनों घर आ गए । स्वाति को भूख लग रही थी लेकिन खाने को कुछ नहीं था । क्या करे वह ? मां जी से कैसे कहे खिचड़ी बनाने को? उसने कातर नेत्रों से आयुष को देखा । आयुष ने हाथ खड़े कर दिए । बोला "मम्मी से तम ही कह दो खिचड़ी बनाने को" । और वह सत्संग में बैठ गया । भूख तो उसे भी बहुत तेज लग रही थी लेकिन कल मम्मी को उसने जो हर्ट किया था तो आज उपवास तो करना पड़ेगा ना । 

अंत में स्वाति ने राधिका से कहा "मां जी । डॉक्टर ने फूड पायजनिंग बताया है और केवल खिचड़ी या दलिया ही खाने के लिए कहा है" 
"तो बना लो और खा लो " । राधिका ने सपाट कह दिया । 
"मुझे नहीं आता है बनाना , मां जी" 
"तो जोमेटो से मंगवा ले । तुझे तो जोमैटो वाला खाना बहुत पसंद है न " 
"डॉक्टर ने बाहर का खाना खाने को मना किया है मां जी" 
"पर मेरे हाथ से तो नमक मिर्च घी वगैरह ज्यादा पड़ता है जो तुझे पसंद नहीं है" । 
"मैं सब खा लूंगी मां जी । बस, आप तो बना दो" । 

राधिका समझदार थी । रस्सी को ज्यादा खींचने से भी वह टूट जाती है । इसलिए आज का सबक इतना ही काफी है । ऐसा सोचकर वह खिचड़ी बनाने चली गई । आयुष और स्वाति को आवाज देकर डाइनिंग टेबल पर बुलवा लिया था । स्वाति आकर डाइनिंग टेबल पर प्लेट वगैरह लगाने लगी । दोनों ने पेट भरकर खिचड़ी खाई थी । खिचड़ी अच्छी भी लग रही थी । स्वाति बोली "बहुत अच्छी बनी थी मां जी, खिचड़ी । मुझे भी सिखा दीजिए न" ? 
"शाम को जब बनाऊंगी तब तू भी साथ रहना । ऐसे बताने से काम नहीं चलेगा" । 

"ठीक है मां जी" । खिचड़ी खाकर वह बर्तन सिंक में रख रही थी कि राधिका ने कहा "तेरे झूठे बर्तन कौन साफ करेगा ? कल तो मैंने कर दिए थे लेकिन आगे नहीं करूंगी । इसलिए इन बर्तनों को साफ करके ही जाना" । और राधिका सत्संग में बैठ गई। 

शाम को जब राधिका खिचड़ी बनाने लगी तो स्वाति भी आ गई और वह भी हाथ बंटाने लगी । स्वाति ने कहा "कल मेरे मम्मी पापा आ रहे हैं मां जी" 

"क्या तूने उन्हें बुलाया है" ?
"हां , मां जी । उनके साथ चली जाऊंगी । जब वापस नौकरी पर जाना होगा तब आ जाऊंगी" । स्वाति ने कहा
"ये मेरा घर है कोई धर्मशाला नहीं । जो जब चाहे आ जाये और जब चाहे चला जाये । समझी । तेरे मम्मी पापा को किसी होटल में ठहरा दे । और हां । अगर इस घर में रहना है तो घर के सदस्य की तरह रह, मेहमान की तरह नहीं । तू भी होटल चली जा । फिर जहां मरजी हो चली जाना और जब चाहे नौकरी पर भी चले जाना" ।

इतना सुनकर स्वाति अवाक् रह गई । उसे राधिका से इस तरह के व्यवहार की बिलकुल उम्मीद नहीं थी । उसे बहुत बुरा लगा ।

इतने में आयुष भी वहां आ गया । स्वाति ने आयुष को देखकर कहा "सुना तुमने आयुष ? मां जी कह रही हैं कि ..।

"मैंने सब सुन लिया है । मां जो कह रही है वह एकदम सही कह रही है । तुम मेहमान नहीं हो । तुमने ना तो मां को मां समझा और न ही इस घर को घर । इसलिए अच्छा होगा कि तुम किसी होटल में ही ठहर जाओ । मेरे से कुछ भी उम्मीद मत रखना । जो भी करो सोच समझ कर करो । मैं तो मां के पास ही रहूंगा "

स्वाति को काटो तो खून नहीं । वह गुस्से से बौखलाकर अपने कमरे में चली गई । राधिका को भी बहुत बुरा लग रहा था इस व्यवहार पर । मगर आयुष ने उसे समझाया कि बीमारी का इलाज कड़वी गोली ही है । थोड़ा सब्र से काम लेना होगा ।

दूसरे दिन सुबह स्वाति जल्दी जग गई और किचन में चाय बनाने लगी । खटर पटर की आवाज सुनकर राधिका की नींद  खुल गई । उसे बड़ा आश्चर्य हुआ । इतने में आयुष भी आ गया । राधिका ने उससे इशारे में पूछा तो वह राधिका को अलग ले गया और कहा
"कल इसने अपनी मां से बहुत सारी बातें की थीं । अंत में यही निष्कर्ष निकला कि जैसा मां चाहें वैसा ही करने में भलाई है । बस, उसी का परिणाम है यह" । आयुष के होठों पर मुस्कान थी ।

राधिका किचिन की ओर चल दी तो स्वाति राधिका से लिपट गई । रो रो कर बुरा हाल हो गया था उसका । रोते रोते बोली "मां जी, मुझे माफ कर दो"

राधिका मोम की तरह पिघल गई । उसे चुप कराते हुए बोली "नहीं मेरी बच्ची । रोते नहीं । मुझे ये सब करने को मजबूर कर दिया, बेटी । मेरे पास और कोई विकल्प नहीं बचा था" । राधिका और स्वाति की आंखों से गंगा, जमना बहने लगी । दोनों के आंसू मिलकर प्रयागराज बन रहे थे । तीर्थराज प्रयाग राज । आयुष भी आकर दोनों से लिपट गया ।

हरिशंकर गोयल "हरि"
4.3.22


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8 Comments

Sachin dev

27-Mar-2022 07:26 PM

बहुत ही बेहतरीन

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Hari Shanker Goyal "Hari"

30-Mar-2022 08:29 AM

💐💐🙏🙏

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Gunjan Kamal

27-Mar-2022 03:10 PM

Very nice 👍🏼

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Hari Shanker Goyal "Hari"

27-Mar-2022 04:23 PM

प💐💐🙏🙏

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Haaya meer

27-Mar-2022 02:17 PM

बहुत खूब

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Hari Shanker Goyal "Hari"

27-Mar-2022 04:22 PM

💐💐🙏🙏

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